हिन्दू स्त्रियाँ मंगलसूत्र क्यों पहनती हैं ?

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शादी के बाद विवाहिता के लिए मंगलसूत्र क्यों ?

हिन्दू परंपरा के अनुसार शादी के बाद महिलाओं को बहुत सी श्रृंगार सामग्री लगाना और गहने पहनना अनिवार्य माना गया है। मंगलसूत्र उन्ही में से एक है। 

मंगलसूत्र वैसे विशेषकर महाराष्ट्र में ज्यादे पहनने की परम्परा है। हर समाज में इसे पहनना जरूरी नहीं माना गया है। लेकिन भारत के कमोवेश हरेक प्रान्त में स्त्रियाँ मंगसुत्र या फिर उसी से मिलते जुलते प्रकार के सूत्र, चाहे वह सूत का एक धागा ही क्यों ना हो, को गले में धारण करती अवश्य पाई जाती हैं ।

तो इतना अधिक है इस  मंगलसूत्र का महत्व, क्योंकि इसे हिन्दू परंपरा में स्त्रियों के सुहाग से जोड़ कर देखा जाता है ।

मंगलसूत्र

 

धागे में पिरोए काले मोती और सोने का पेंडिल से बना मंगलसूत्र  पहनना विवाहित स्त्री के अनिवार्य बताया गया है।

 

इसकी तुलना किसी अन्य आभूषण से नहीं की जाती। प्राचीन काल से इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। हर स्त्री को मंगलसूत्र  विवाह पर पति द्वारा पहनाया जाता है जिसे वह स्त्री पति की मृत्यु पर ही उतार कर पति को अर्पित करती है।

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उसके पूर्व किसी भी परिस्थिति में स्त्री को इसका उतारना मना है। इसका खोना या टूटना अपशकुन माना गया है। साथ ही इसे पति की कुशलता से भी जोड़ा गया है। इसी वजह से विवाहित महिलाओं के लिए इसका  पहनना अनिवार्य माना गया है।

 

 मंगलसूत्र  को विवाहित स्त्री जीवन भर अपनी एक अनमोल धरोहर के रूप में सहेज कर रखती है। दरअसल ऐसा माना जाता है कि कोई भी विवाहित स्त्री अपने पति के जीवन रक्षा और अपने वैवाहिक जीवन की रक्षा के लिए ही इसे  पहनती है।

 

 यह तो हुआ मंगलसूत्र का धार्मिक महत्व परंतु इसकी अनिवार्यता के कुछ अन्य कारण भी है।

 

विवाहित स्त्री जहां जाती है वहां वह आकर्षण का केंद्र होती है। सभी की अच्छी-बुरी नजरें उसी की ओर उठ जाती हैं।

 

ऐसे में  इस सूत्र के काले मोती उसे बुरी नजर से बचाते हैं। वहीं उसमें लगे सोने के पेंडिल का भी विशेष महत्व है।

 

चूंकि सोना तेज और ऊर्जा का प्रतीक है। इसी लिए सोने के पेंडिल से स्त्री में तेज और ऊर्जा का संचार बना रहता है। इन्हीं वजह से मंगलसूत्र को विवाहित स्त्रियों के लिए अनिवार्य बताया गया है।

 

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